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Cousin बहन की चुदाई – रिश्ता नहीं, चूत का लंड से प्यार Part - 3

✍️ लेखक: sunny.saxena | 👁️‍🗨️ Views: 54 | 🗂️ श्रेणियाँ: Fantasy , Taboo , step relations , anal fantasy , desi romance , submissive girl

मेरा नाम सनी सक्सेना है। पिछली कहानी में मैंने रिया की चूत दो बार Chodi, फिर उसने मेरी मालिश करते हुए मेरी गांड तक पहुँची… अब कहानी वहीं से शुरू होती है — जब रिया मेरी गांड की दरार पर जीभ फिरा रही थी… और मेरी साँसें रुक रही थीं।

कज़िन बहन की चुदाई – चूत का लंड से प्यार (Part 1)
कज़िन बहन की चुदाई – चूत का लंड से प्यार (Part 2)

Cousin behen ki chudai – Rista nahi chut ka lund se pyar (Part 3)

मैंने रिया को हल्के से ऊपर खींचा — और वो खुद ही उल्टी होकर मेरे मुँह के ऊपर आ गई। अब उसका चेहरा मेरे लंड के पास था… और उसकी गांड, सीधी मेरी आँखों के सामने।

69 की इस पोजिशन में हम दोनों अब एक-दूसरे की गांड से रूबरू थे — ना सिर्फ देखने के लिए… बल्कि उसे **महसूस करने**, **चाटने**, और **खुलकर जीने** के लिए।

मैंने उसकी चिकनी, सेव की हुई गांड की दरार को दोनों हाथों से खोला — और अंदर झाँका… वो छोटा सा चेद, जो हल्की नमी और गंध से भींगा हुआ था… उसके चारों ओर की त्वचा जैसे किसी और ही दुनिया की थी — नर्म, गर्म, और एक सिहरन देने वाली।

मैंने पहले हल्की फूँक मारी — रिया काँपी… “आह…” — उसकी आवाज़ जैसे उसकी चूत से नहीं, सीधे गांड के अंदर से निकली।

और फिर मैंने चाटा — धीरे… अंदर तक ज़ुबान घुसी… और वो तड़प गई। उसकी गांड का स्वाद नमकीन, और खुशबू — एक ऐसी जानी-पहचानी सी औरत की गंध, जो किसी को कभी भूख से मार सकती है।

उधर वो भी चुप नहीं थी — उसने मेरे लंड को ज़ुबान से नीचे तक चाटा, और फिर मेरी जांघें पकड़कर मेरी गांड की दरार तक जा पहुँची। “अब तेरी भी गांड चाटूँगी…” — उसने फुसफुसाया।

मैंने आँखें बंद कर लीं — और अगली ही पल उसकी ज़ुबान मेरी गांड पर थी। एक अजीब सी ठंडी लहर अंदर तक चली गई — **मर्द होने के बाद भी, उस पल में मैं किसी और की पकड़ में था।**

उसकी ज़ुबान मेरी गांड के चारों ओर गोल-गोल घूम रही थी — कभी चूसती, कभी उँगलियों से खोलती, और कभी हल्के से नाखून चला देती। हर बार जब उसकी ज़ुबान मेरे चेद के बीच से गुज़रती, तो मेरी रीढ़ तक सिहरन दौड़ जाती — और लंड बिना छुए ही झटका खा जाता, जैसे कोई invisible हाथ उस पर पकड़ बना रहा हो।

मेरे बदन में ऐसा कंपन हुआ, जैसे हर नस खुद बिन बोले कह रही हो — अब ये गांड भी उसकी हो चुकी है… और लंड अब उसका गुलाम।

उसने फुसफुसाते हुए कहा — “तेरा लंड, तेरी गांड, तेरी रग़ें — अब मेरी चूत से कम नहीं… अब मैं सब चाटूँगी, सब पिऊँगी — क्योंकि तू अब सिर्फ मेरा है। अंदर से भी… और पीछे से भी।”

उसकी जुबान फिर से चेद पर आ टिकी — और इस बार एक साथ उसकी ज़ुबान ने चाटा… और उँगलियों ने लंड की जड़ को पकड़ा। वो तालमेल इतना घातक था कि मेरी साँसें रुकने लगीं… मेरे लंड का सिर अब अपनी मर्ज़ी से हिल रहा था, जैसे उसके होंठों और चूत का गुलाम बन चुका हो।

मेरी ज़ुबान अब रिया की गांड के चेद पर अटक गई थी — वो चेद जो अभी थोड़ी सी भींगी हुई थी, लेकिन पूरी तरह मेरी जुबान को पीने के लिए तैयार थी।

मैंने धीरे-धीरे उसकी गांड की दरार को दोनों हाथों से फैलाया — और जीभ को सीधे उसके चेद में डाल दिया। उसकी कराह अंदर तक गई — “उह्ह… चाट… हाँ चाट मेरी गांड… खोल इसे…”

मैंने जुबान को घुमाया, दबाया — उसका चेद अब फड़कने लगा था। जैसे बार-बार मुँह खोल रहा हो, जैसे बुला रहा हो मेरे लंड को — “अब आ… अब ठोक… अब फाड़…”

मैंने उँगली उठाई — और उसके चेद पर धीरे से घुमाई। रिया काँपी, “उफ्फ्फ… हाँ… डाल न एक बार… धीरे से…”

मैंने पहली उँगली धीरे से अंदर डाली — उसकी गांड की tightness ने जैसे मेरी उँगली को चूस लिया। फिर हल्का सा अंदर-बाहर… और दूसरी उँगली भी साथ लगाई। अब वो बस काँप रही थी — “अब नहीं सहा जा रहा… अब तेरा लंड चाहिए… गांड में… पूरा!”

मेरा लंड अब पूरी तरह से तना हुआ था, नसें फटने को तैयार — मैंने उसे हाथ में लिया, और धीरे-धीरे उसकी गांड के चेद पर सटाया। रिया की साँसें थमीं… और मैंने एक झटके में आधा लंड उसकी गांड में घुसेड़ दिया।

“चूssssss… माँ… फाड़ दिया…” — रिया चीखी, लेकिन पीछे से खुद और धँस गई।

अब मैं हर झटके में उसका चेद और खोल रहा था — धप्प! धप्प! धप्प! — उसकी गांड मेरी जांघों से टकरा रही थी। उसका चेद अब मेरी रफ्तार के हिसाब से खुल रहा था — और वो सिर्फ चिल्ला रही थी — “हाँ! फाड़ मेरी गांड… तेरा लंड ही चाहिए था यहाँ… बस तेरा लंड…”

अब मेरा लंड उसकी गांड के आखिरी सिरे तक धँसा था — और मैं एक सेकंड भी नहीं रुका। कमर पकड़ी और सीधा फाड़ने लगा — धप्प! धप्प! धप्प! — हर झटके के साथ उसका पूरा बदन हिल रहा था।

उसकी आवाज़ें अब गले से नहीं, सीधे अंदर से आ रही थीं — “हाँ… ऐसे ही मार… फाड़ मेरी गांड… चूस ले साला लाज तक!”

मैंने बाल पकड़कर उसके चेहरे को बिस्तर पर दबाया — और पीछे से पूरा जोर लगा दिया। “अबे चुपचाप गांड दे… जब तक मैं चाहूं, तब तक ठुकती रहेगी तू।”

रिया काँपते हुए बोल रही थी — “कितनी बार ठोकेगा बे? फिर भी गांड कह रही है — और डाल, और डाल…”

मैं अब बस ठोक रहा था — ना कुछ सोच, ना होश — बस लंड, गांड, और जानवर जैसी रफ्तार। उसकी गांड अब पूरे तरीके से मेरा playground बन चुकी थी।

जब मैं आखिरी झटका मारने वाला था — मैंने उसकी टाँगें और फैलाईं, गांड पूरी खुली थी — और एक झटके में मैंने लंड बाहर निकाला — और सीधा — उसकी खुली गांड की दरार पर सारा गर्म लावा उगल दिया…

“चुssss… हाँ… सब मेरे ऊपर फेंक दे…” — रिया मुँह खोलकर झेल रही थी। सफेद, चिपचिपा गर्म लंड का माल उसके पूरे पिछवाड़े पर फैल गया था — उसकी कमर काँप रही थी, और उसकी साँसें अब भी बेकाबू थीं।

मैंने थोड़ा पीछे हटने की कोशिश की, लेकिन उसने तुरंत मेरा लंड पकड़ लिया — “कहाँ जा रहा है बे? ये अभी पूरा सूखा भी नहीं… और मेरी गांड अब भी तेरे लंड की भूखी है।”

उसने लंड को मुँह में ले लिया — गहराई तक — जैसे उस चूसने में ही उसका सारा प्यार, सारी भूख उतर रही हो। “तू थक गया तो क्या… मेरी चूत, मेरी गांड, मेरी जुबान — सब अभी तेरे लिए खड़ी हैं।”

“थोड़ा रुक जा… मेरी चुदक्कड़ बहन… अभी अगला राउंड बाकी है — लेकिन उससे पहले… कॉफी।”

हम दोनों हँस पड़े। वो हँसी थकी हुई थी, लेकिन उसमे सुकून था। जैसे शरीर का हर अंग अभी भी काँप रहा हो, पर दिल पूरी तरह चैन में हो।

मैंने उसके माथे को किस किया — और धीरे से मुस्कराकर बोला: “I love you…”

उसने मेरी गर्दन में बाँहें डालीं, और मुस्कराकर बोली — “I love you too… मेरे चोदू भाई।”

हम दोनों चुपचाप कुछ मिनट तक बिस्तर पर लेटे रहे — नग्न, पसीने से भीगे, लेकिन अब वो जानवर वाली आग थोड़ी देर के लिए ठंडी थी। मैंने धीरे से उसकी उंगलियाँ थामीं — “कॉफी बना दूँ?”

वो हँसी, आँखें खोली — “हाँ… लेकिन सिर्फ कॉफी नहीं चाहिए… साथ में तेरा प्यार भी।”

मैं उठकर बिस्तर से नीचे उतरा — कमरे में अब हल्का अंधेरा था, सिर्फ बदन की खुशबू और उसकी आँखों की चमक बाकी थी। मैंने किचन की तरफ जाते हुए पीछे मुड़कर देखा — वो अब भी मुझे नंगी पीठ दिखा रही थी… और मुस्कराई।

प्यार… वासना… लत — शायद हम दोनों को अब फर्क नहीं पड़ता था, क्योंकि जो भी था… पूरा का पूरा एक-दूसरे का था।

मैं किचन में coffee बना रहा था — दूध उबलने ही वाला था, और मैं गैस के सामने खड़ा था, अभी भी रिया के बदन की गर्मी याद कर रहा था।

तभी पीछे से दो बाँहें मेरी कमर में लिपट गईं — रिया थी, अब भी बिना कुछ पहने, बस एक चादर में खुद को ढके हुए।

“इतनी देर से अकेले क्या कर रहा है?” — उसने फुसफुसाते हुए कहा, और मेरी पीठ पर होंठ रख दिए। मैं मुस्कराया, “तेरे लिए ही बना रहा हूँ… ताकि थोड़ी देर रुक सके तू।”

“रुकने वाली नहीं हूँ मैं…” — वो बोली और slab पर चढ़ गई, चादर गिरा दी, और अपनी टाँगें फैला दीं। उसकी नंगी गांड और गीली चूत अब सीधे मेरी आँखों के सामने थी — “अब यहाँ भी बना कुछ… मेरी चाय तेरे लंड से बनती है।”

मैंने कोई जवाब नहीं दिया — सिर्फ उसके पास गया और उसकी गरदन पर हल्के-से होंठ रखे। फिर उसका मुँह अपनी ओर किया — और दोनों के होंठ एक हो गए। एक गहरी, लंबी, गीली चुम्बन — ज़ुबानें लड़ती रहीं… साँसें आपस में उलझ गईं।

मैंने उसकी कमर पकड़ी, और उसके एक पैर को ऊपर उठाकर अपनी जाँघ पर टिका दिया — अब हमारी जाँघें, छातियाँ, सब टकरा रही थीं।

उसके होंठ अब मेरे कान तक आ गए थे — “फिर से चाट ना… रसोई में ही चोद ना… सब यहीं उबाल।”

मैंने उसकी चूत पर उँगली रखी ही थी, तभी — छन्न्न्न!!! — दूध उबलकर नीचे गिरा, और किचन में तेज़ सीटी सी गूँज गई।

हम दोनों चौंक गए — मैं जल्दी से मुड़ा, गैस बंद की, और दोनों हँस पड़े।

“साली… तेरी वजह से दूध भी फट जाता अगर एक मिनट और चूमा होता…”

“और मैं तो पहले ही फटी हुई हूँ…” — उसने शरारत से कहा, और फिर चुपचाप अपनी चादर उठाई।

मैंने कप में कॉफी डाली, दोनों बैठकर टेबल पर आए। वो चुपचाप मेरी आँखों में देखती रही — और हर घूँट में जैसे फिर से अपनी चूत गरम कर रही थी।

कुछ देर बाद… रिया ने धीरे से अपनी टाँग मेरी गोद में रख दी — चेहरे पर वही मासूम सी मुस्कान, लेकिन आँखों में लुच्चापन चमक रहा था।

“भाई…” — उसने लंबा खींचते हुए कहा। मैंने बिना उसकी तरफ देखे पूछा — “क्या हुआ अब?”

वो होंठ दबाते हुए बोली — “तेरा लंड बड़ा बद्तमीज़ है…” “क्यों?” “क्योंकि चूत का स्वाद चखते ही अब रुकना ही नहीं चाहता।”

मैं हँस पड़ा — “और तेरी चूत तो पूरी चुदक्कड़ निकली…” “हर बार खुद लाकर पेश करती है…”

रिया मेरी गोद में चढ़ आई — और बोली, “तो कर ना… क्यों रोक रखा है बे?” मैंने उसकी कमर थामी और मज़ाक करते हुए कहा — “रुक जा मेरी प्यारी चुदक्कड़ बहन… अभी तो कॉफी भी पूरी नहीं हुई।”

“कॉफी तो ठंडी हो गई…” — वो मुँह बनाते हुए बोली — “लेकिन मेरी चूत… फिर से गरम है।”

मैंने उसे ज़रा करीब खींचा, उसके होंठों को चूमा — धीरे, गहराई से… वो भी पूरे बदन से चिपक गई, और मुँह से सिसकारी निकली — “उह्ह्ह… भाईया… प्लीज़ ना…”

मैंने उसका चेहरा अपनी हथेली में लिया — “क्या चाहिए मेरी बेहूदी बहन को?” वो आँखें मूँदकर बोली — “बस तेरा लंड… और वो भी अब… पूरी चूत में…”

मैंने मुस्कराते हुए कहा — “अभी से इतनी बेकाबू? तू तो सच में मेरी सबसे गंदी, सबसे प्यारी चुदक्कड़ बहन है…” रिया शर्माकर बोली — “हूँ… और मैं तुझे ही चाहती हूँ… तेरी हर गर्मी मेरी गांड में चाहिए।”

रिया मेरी गोद में चढ़ी थी — उसकी आँखों में वो चूत वाली भूख फिर से साफ़ दिख रही थी। मैंने कॉफी का कप एक तरफ रखा और उसे कसकर पकड़ लिया।

“तेरी चूत फिर से चिल्ला रही है क्या?” वो मुस्कराई — “तेरा लंड अगर सुन ले, तो चुप हो जाएगी।”

मैंने बिना कुछ कहे उसकी गर्दन पर होंठ रख दिए — धीरे-धीरे नीचे उतरा, और उसके सीने तक आ गया। उसके निप्पल अब पत्थर जैसे सख्त हो रहे थे, और मेरी जीभ उसपे नाच रही थी।

रिया हाँफ रही थी, “हाँ… चूस भाई… तू ही है जो मेरी छातियों की प्यास बुझा सकता है…”

मैंने उसकी दोनों छातियों को अपने हाथों में लिया, हल्के से मसला… फिर मुँह में भर लिया — एक हाथ से निप्पल दबाया, दूसरे से उसकी चूत तक पहुँचा।

“चूsss… आह्ह…” — रिया की साँसें तेज़ हो गईं। उसने मेरी शर्ट खींचकर उतार दी — अब हम दोनों सिर्फ शरीर थे, कोई रिश्ते का नाम नहीं।

रिया मुझे सोफ़े पर धकेलते हुए बोली — “अब मुझे मत रोक भाई… तू ही है जो हर जगह चाट सकता है…”

वो नीचे झुकी, मेरी पैंट खोली — और धीरे से लंड बाहर निकाला, जीभ से टिप पर घुमा दिया — “चूssss…” — जैसे हर चूसन के साथ उसका प्यार और हवस बाहर आ रही थी।

मैंने उसका सिर पकड़कर और करीब किया — उसकी ज़ुबान अब पूरे लंड पर घूम रही थी, और मेरी उंगलियाँ उसकी चूत के अंदर तक जा चुकी थीं।

हम दोनों अब एक-दूसरे पर टूट पड़े थे — उसने मेरा लंड मुँह में भर रखा था, और मैं उसकी चूत में उँगलियाँ नचा रहा था।

रिया ने मेरे लंड को कसकर पकड़ा — और फिर धीरे-धीरे उसे पूरा मुँह में लेना शुरू किया। “चूsss… हुम्म… गग्ग…” — जैसे ही लंड गले के अंदर तक गया, उसकी आँखें हल्की सी नम हो गईं, लेकिन मुँह ने पकड़ ढीली नहीं की।

उसकी जीभ मेरे लंड की नसों पर ऊपर-नीचे चल रही थी — और उसके होंठ, टाइट grip बनाकर पूरे लंड को अंदर-बाहर कर रहे थे।

वो फिर से लंड को गले तक भरने लगी — हर बार थोड़ा और गहराई तक… और इस बार मैंने उसका सिर दोनों हाथों से पकड़कर हल्का दबा दिया — “अब ले पूरा…”

उसका मुँह अब पूरी तरह मेरे लंड में खो गया था — “गग्ग… गक… हुम्म…” — उसकी साँसें जैसे रुक गईं। आँखों से पानी निकलने लगा, नाक से हल्की सी आवाज़ आई — लेकिन फिर भी उसने खुद को नहीं हटाया।

वो एक हाथ से मेरा पेट पकड़कर खुद को सँभालने लगी, दूसरे हाथ से मेरी जांघ थपथपाने लगी जैसे कह रही हो — “बस कर भाई… नहीं साँस आ रही…”

मैंने लंड को धीरे से बाहर निकाला — पूरा लार से भरा, चिपचिपा, उसकी ठुड्डी तक लार लटक रही थी। वो खाँसी जैसी करते हुए हँस पड़ी — आँखें गीली, मुँह लाल, लेकिन चेहरे पे वही लास्ट वाला शैतानी एक्सप्रेशन।

“साले… घुसेड़ दिया पूरा… दम घुट गया मेरा…”

मैं मुस्कराया — और उसकी ठोड़ी पकड़कर बोला — “क्यों बहन… मजा आया न? या फिर और भरूँ?”

वो होंठ चाटते हुए बोली — “तेरा लंड है भाई… मार भी सकता है, और प्यार भी…” फिर जीभ से टिप चाटकर बोली — “अब अंदर वाली भूख बुझा… चूत और गांड दोनों रो रही हैं।”

मैंने उसे अचानक गोद में उठाया — और सीधा टेबल पर पटक दिया। उसका बदन अब भी गरम था, और आँखें आधी बंद — मैंने उसकी टाँगें फैलाईं, और चूत पर उँगली घुमाते हुए झुका — “अब तुझे फिर से चुदना है ना, मेरी लाडली चुदक्कड़ बहन…”

वो हाँफती हुई, गर्दन पीछे झुका के बोली — “हाँ भैया… तू ही चोद सकता है मुझे ऐसे… बाकी सब तो बस मुँह मारते हैं…”

मैंने उसकी चूत पर दो उँगलियाँ अंदर डाल दीं — वो तड़प गई, और गाली दी — “चूss… बे साले… धीरे ना… मेरी गांड तक सुन रही है ये चुदाई…”

मैंने उसकी निप्पल पर दाँत रगड़ा — और कमर कस के फुसफुसाया — “तेरी चूत की रग रग पहचान चुका हूँ मैं… अब जितनी बार चाहूँ, उतना गहरा ठोकूँगा…”

वो मुस्कराई, होंठ काटे, और आँखें मेरी आँखों में डालकर बोली — “ठोक ना फिर… मुँह नहीं मार रही मैं… चूत हूँ तेरे लायक… भर दे पूरा…”

मैंने उसकी टाँगें अपने कंधों पर रख दीं — अब उसका पूरा निचला हिस्सा मेरे आगे खुला पड़ा था। मैंने लंड दोबारा चूत पर सटाया — और एक ही झटके में पूरा अंदर तक धँसा दिया — “धप्प!”

रिया चीखी — “उफ्फ्फ… हाँ… ऐसे ही चीर ना… और गहरा, और तेज़…”

अब मैं हर झटके में जान डाल चुका था — “धप्प! धप्प! धप्प! धप्प!” उसकी गांड मेरे लंड से टकराकर आवाज़ कर रही थी — और चूत से पानी निकलकर टांगों तक बह रहा था।

“रोक मत… बस ठोक…” — वो अब पूरी तरह बेकाबू थी, “चूत अब तेरे लंड की गुलाम है…”

मैंने उसके बाल पकड़े — चेहरा अपने पास खींचा — “किसकी चूत है?” वो हाँफते हुए बोली — “तेरी… सिर्फ तेरी लंडू भैया… बस तू ही फाड़ सकता है…”

मैंने अब उसकी टाँगें और फैलाकर पूरा लंड अंदर तक घुसा दिया — हर झटका अब इतना गहरा लग रहा था कि रिया का पूरा बदन हिल रहा था। उसका मुँह खुला हुआ, आँखें पलटी हुई, और सांसें बेकाबू थीं।

“मार… हाँ… और अंदर… बस ठोक…” — वो काँपती जा रही थी। मैंने उसकी चूत के अंदर पूरी ताकत से झटका मारा — “धप्प!” — और उसी पल रिया का बदन एकदम से जकड़ गया।

उसकी चूत अंदर से कस गई, पैर अकड़ गए, उंगलियाँ मेरी पीठ में धँस गईं — और फिर वो चीखी — “भाई… आह्ह्ह्ह… झड़ रही हूँ… झड़ रही हूँ… चूत फट रही है…”

उसके पूरे बदन में कंपन था, चूत से गर्म, चिपचिपा रस बहने लगा — वो खुद लिपट गई मुझसे — “आह्ह… हाँ… तूने मेरी चूत को झुका दिया… अब हर बार तू ही चाहिए।”

मैंने उसके चेहरे को चूमा — और फिर दो और गहरे झटके मारे — “धप्प! धप्प!” — अब मेरी बारी थी।

मैंने कमर कस ली, लंड पूरा जड़ तक धँसा दिया — और फिर… एक झटके में “उफ्फ्फ्फ्फ…” — सारा गरम माल उसके अंदर फूट पड़ा।

रिया हँफती रही, मुँह खुला, चूत से लावा गिरता रहा। “भर दिया ना भाई… अब ये चूत फिर तेरी गुलाम है…”

मैं उसके ऊपर हल्का सा ढेर हो गया — हम दोनों के बदन पसीने से तर-बतर थे, साँसें एक-दूसरे की गर्दन पर टकरा रही थीं। उसने मेरी पीठ पर अपनी उंगलियाँ फिराईं, जैसे अब भी कंपकंपी बाकी हो।

“अब कुछ देर मत चोद…” — रिया बोली, “अब तू बस यूँ ही लेटा रह, मेरी चूत के ऊपर, बिना हिले…”

मैं मुस्कराया, और उसके गाल पर चुम्मी ली — “ठीक है मेरी चुदक्कड़ बहन… अब तू बस मेरी साँसों के नीचे पड़ी रह…”

कुछ मिनट हम यूँ ही लेटे रहे — उसकी चूत से अब भी थोड़ा-थोड़ा लावा टपक रहा था, और मेरी लंड उसकी जाँघ से चिपका हुआ धड़क रहा था।

रिया ने मुस्कराकर मेरी तरफ देखा — “अबे… लंड फिर से सख़्त हो रहा है… इतनी जल्दी भूख जाग गई?”

मैंने उसकी गांड पर हल्की सी थपकी मारी और जवाब दिया — “अभी तो तेरी गांड बाकी है बहन… और उसको चोदने का असली हक़ सिर्फ मुझे ही है।”

रिया बिना कुछ बोले मुस्कराई — फिर चादर फेंककर सीधी उल्टी होकर झुक गई, बिस्तर पर चारों हाथ टेककर अपनी गांड हवा में टिका दी। गांड ऊपर, चूत नीचे — सब कुछ मुझे परोस चुकी थी।

उसने पीछे मुड़कर देखा, आँखों में वही पुरानी तलब — “भाई…” — उसकी आवाज़ में अब कोई झिझक नहीं थी, “अब गांड में फिर से डाल ना… तूने पहले जो भरा था, अब वो जगह फिर से खाली लग रही है…”

रिया झुकी हुई थी — उसकी गांड ऊपर तनी हुई, जैसे खुद पुकार रही हो: “अब फिर से भर मुझे… वही लंड चाहिए…”

मैंने पीछे से उसके चेद पर हल्के से लंड सटाया — पहले से चिकना था, खुला हुआ भी — बस हल्का सा धक्का दिया और लंड खुद ही अंदर फिसल गया।

“उह्ह्ह…” — रिया की सिसकारी निकली, “हाँ… ऐसे ही भर… अब ये गांड तेरे लंड के बिना अधूरी लगती है…”

मैंने उसकी कमर दोनों हाथों से थामी — और पूरा लंड एक झटके में जड़ तक ठोक दिया — “धप्प!” — उसकी पूरी कमर हिल गई।

अब मैं झटकों में था — “धप्प! धप्प! धप्प!” गांड पहले से खुली थी, लेकिन tightness अब भी था — और हर धक्का रिया की साँसें फुला देता।

“ओह्ह भैया… और गहरा… और जोर से मार… मेरी गांड अब तेरी आदी हो गई है…”

मैंने एक हाथ से उसकी चोटी खींची, दूसरे से उसकी गांड को फैलाया — अब लंड हर धक्के में पूरा अंदर तक घुस रहा था — बिना रुके, बिना ढीले हुए।

रिया कराह रही थी — “हाँ… हाँ… बस्स… और दे…” उसका चेहरा तकिए में दबा था, लेकिन आवाज़ें अब भी गूंज रही थीं।

मैंने कमर कसकर आख़िरी कुछ झटके डाले — अब पूरा लंड उसके अंदर था, और मैं फुल रफ़ ठोक रहा था। गांड से चपचप की आवाज़ें, हमारे बदन का टकराव — सब एक ही रफ्तार में पागल हो चुका था।

फिर मैंने गहराई में घुसकर आख़िरी झटका मारा — और गांड के अंदर ही सारा गरम लावा फोड़ दिया — “चुssss… भर दिया…”

रिया काँप गई, उसने चादर को जकड़ लिया — उसकी गांड अब थक चुकी थी, लेकिन उसकी मुस्कान अब भी वही थी — “आज फिर तूने मुझे भर दिया भाई… अब चैन से सो सकूँगी…”

गांड में लंड का आख़िरी झटका लगने के बाद, हम दोनों बस वहीं बिस्तर पर ढेर हो गए।

रिया मुँह के बल लेटी थी, मैं उसके बगल में — हम दोनों के बदन से भाप निकल रही थी, चूत और गांड से लावा अब भी टपक रहा था — कमरा अब भी उस गर्मी और चूसी हुई देहों की खुशबू से भरा था।

मैंने रिया को अपनी तरफ खींचा — वो बिना कहे मेरी छाती पर चढ़ आई, और फुसफुसाई — “बस… अब और नहीं… अब मैं तेरे लंड की गुलाम होकर चैन से सोना चाहती हूँ…”

मैंने उसके माथे को चूमा — उसके गाल, होंठ, और फिर उसके गले को — वो धीरे-धीरे मेरी बाँहों में सिमट गई।

कमरे की रौशनी अब बुझ चुकी थी — बाहर से हल्की हवा आ रही थी, और मोबाइल स्क्रीन पर टाइम चमक रहा था — “04:02 AM”

हम दोनों अब नंगे, पसीने से लथपथ — एक-दूसरे की बाँहों में लिपटे हुए — धीरे-धीरे साँसें धीमी होने लगीं… और फिर बिना कुछ बोले, एक साथ आँखें बंद हो गईं।

एक चूत, एक लंड — और दो जिस्म, अब एक नींद में डूब चुके थे… जहाँ ना रिश्ता था, ना शर्म — बस तृप्ति, भूख… और एक लत।

रात खत्म हुई थी… लेकिन भूख नहीं।
जो लत आज लगी थी, वो एक बार की नहीं थी — अब हम दोनों को पता था कि ये चुदाई का सिलसिला रुकने वाला नहीं।

अगले दिन क्या हुआ? कैसे हमने नए बहाने से नए अंदाज़ में एक-दूसरे को फिर से चूसा, चाटा, और चोदा — ये मैं बताऊँगा अगली कहानी में…

कज़िन बहन की चुदाई – चूत का लंड से प्यार (Part 4)


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रिया मेरी कज़िन बहन थी — लेकिन जो रिश्ता हमारे बीच बना, वो सिर्फ खून का नहीं… जिस्म और चाहत का भी था। अपने thoughts नीचे कमेंट में ज़रूर बताएं — कहानी कैसी लगी, और ऐसे रिश्ते पर आपकी क्या राय है?

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