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रात भर की चुदाई के बाद, मेरे बदन में हल्का दर्द था… लेकिन उस दर्द में भी एक अजीब सा सुकून था। जैसे किसी ने अंदर से मुझे भर दिया हो… लेकिन सुबह उठते ही फिर से वही गुदगुदी सी होने लगी — मेरी चूत फिर से हल्की सी तड़प रही थी। शायद ये वही लत थी जिसकी शुरुआत कल रात हुई थी।
मैं बिस्तर से उठी, और सीधे वॉशरूम में चली गई। नहाने का मन नहीं था… बस, अंदर की बेचैनी कुछ सुलझानी थी। अंदर जाते ही मैंने दरवाज़ा बंद किया… और अपनी टीशर्ट उतार दी। शीशे में अपना नंगा बदन देखा — चूचियों पर उसके होंठों के हल्के निशान थे… और मेरी जाँघों के बीच की वो जगह, जो कल रात तक मासूम थी… अब किसी की आगोश में समा चुकी थी।
मुझे लगा, फिर से उसी अहसास में डूब जाऊं। मैंने अपनी उँगलियाँ अपनी चूत पर रखीं… और धीरे-धीरे सहलाने लगी। भीतर से कुछ टपका… और तभी पीछे से किसी ने आकर मेरी कमर पकड़ ली।
"सुहानी..." — उसकी आवाज़ मेरे कान में गूंज रही थी। मैं चौंकी नहीं… क्योंकि मैं चाहती थी कि वो आए। मैंने पीछे मुड़ के देखा — अर्जुन खड़ा था… नंगे बदन, गीले बालों के साथ… और उसका लंड पूरी तरह से खड़ा हुआ था।
"तू फिर से तैयार है?" — उसने धीमे से पूछा। मैंने कोई जवाब नहीं दिया… बस, अपना दायाँ पैर उठाकर वॉशरूम की दीवार पर टिकाया… मेरी चूत अब पूरी तरह खुली हुई थी — और उसकी गर्म नज़रें मेरे रोम-रोम को भिगो रही थीं।
उसने मेरे चूचियों को पीछे से पकड़ कर दबाया… और अपने लंड को धीरे से मेरी चूत की दरार पर रगड़ने लगा। "आज मुझे देखती रहना…" — उसने कहा, और शीशे की ओर मेरा चेहरा मोड़ दिया। अब मैं खुद को शीशे में देख रही थी — एक लड़की जो अपनी ही प्यास से कांप रही थी… और पीछे से किसी का लंड अपनी गहराई में उतरता महसूस कर रही थी।
उसने एक झटके में अपना लंड मेरी चूत में घुसा दिया… "उफ़..." — मेरी साँस अटक गई। उसने मुझे कमर से पकड़ा… और खड़े-खड़े ही धक्के मारने लगा — तेज़, गहरे, थिरकते हुए। हर बार जब उसका लंड भीतर जाता… मेरी नज़रें शीशे में अपनी आँखों से टकरातीं — और मेरी चूत, हर बार उसकी थाप पर और भी ज़्यादा खुलती जाती।
उसने एक हाथ मेरी गर्दन पर रखा, और दूसरे से मेरी चूचियों को जोर से दबा दिया… उसके हर झटके पर मेरी टांगें काँप रही थीं… और मेरी चूत से रस बहता जा रहा था। "तेरी चूत तो अब आदत डाल चुकी है..." — उसने कहा, और एक आखिरी गहरा झटका मारा… मेरी चीख मुंह से नहीं — मेरी आँखों से निकली।
वो थक के मुझसे चिपक गया… लेकिन मेरी चूत अब और भी ज्यादा खोल चुकी थी। अब ये सिर्फ उसका शरीर नहीं था जो मुझे भर रहा था — अब तो मेरा मन, मेरी आत्मा… सब कुछ उसके लंड से जुड़ चुका था।
**अगले पार्ट में:** जब सुहानी ने खुद अर्जुन को बुलाया — अपने रूम में, अकेले… और कहा — “आज मुझे पलटा कर चोद… बिस्तर की चादर गीली होनी चाहिए… मेरी नहीं, तेरी वजह से…”