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मैं Priya... और अब मैं वो लड़की नहीं रही जो Rajeev के सामने पहली बार सिसकी थी। अब मेरे जिस्म को, मेरी चूत को, उस गर्मी की लत लग चुकी है। शुरुआत प्यार से हुई थी — अब ये नशा बन चुका है।
Rajeev शहर से बाहर रहता है। जब मिलता है, प्यार करता है... संभालता है... लेकिन वो अब काफी नहीं लगता। मेरी चूत हर दो-तीन दिन में तड़पने लगती है — उंगली से रगड़ने में अब वो बात नहीं। अब मुझे किसी की पकड़ चाहिए, किसी की गरम साँसें, किसी का लंड जो मुझे भर दे — पूरी तरह।
Sameer मेरा junior था। रोज़ मेरी छाती पर उसकी नज़र जाती थी — और मुझे ये देखना अच्छा लगने लगा था। एक दिन मैंने खुद उसे अकेले में बुलाया — कैंपस की दीवार के पीछे। "छूना है?" मैंने पूछा। उसकी आँखें चमक गईं — उसने मेरे निप्पल को ऊपर से देखा, जैसे पहली बार कुछ असली देखा हो।
मैंने खुद अपनी टी-शर्ट उठाई — ब्रा सरकी, और उसके सामने मेरी छातियाँ खुल गईं। उसने झुककर दोनों निप्पल चूस लिए — तेज़ी से, जैसे वो भूखा हो। मेरे होंठों से आह निकली — और मेरी जाँघों के बीच से गर्मी उठने लगी। मेरी चूत उस समय पहले से ही भीगी हुई थी… और मैं चाहती थी वो मुँह में ले।
मैंने उसकी pant खोली — उसका लंड खड़ा हो चुका था। मैंने अपनी जुबान उसकी जड़ से शुरू की — टिप तक लाई और फिर मुँह में ले लिया। Sameer कराह रहा था — “Priya… तू तो आग है…” वो मेरा सर पकड़कर गहराई तक ले गया — मेरे गले तक, और मेरे गाल फुल गए। लेकिन मैं रुकी नहीं — क्योंकि अब ये मेरे लिए कोई नई चीज़ नहीं थी — अब ये मेरी ज़रूरत थी।
फिर मैंने अपनी सलवार उतारी — झुक कर दीवार पर हाथ टिकाए। वो पीछे से आया — और बिना देर किए लंड चूत में डाल दिया। "आह... हाँ... ऐसे... और अंदर Sameer..." मेरी टाँगें काँप रही थीं, दीवार मेरी साँसें सुन रही थी — और Sameer मेरी चूत को भरता जा रहा था… झटकों के साथ।
जब वो झड़ा — उसकी गर्मी मेरे अंदर फैल गई। और मैं... मैं मुस्कराई — क्योंकि अब मेरी तृप्ति किसी एक की मोहताज़ नहीं रही थी।
Aditya — 32 साल का, सीनियर… तेज़ नज़रों वाला। उस दिन स्टोररूम में मैं अकेली थी, और वो भी वहीँ आ गया। बिजली चली गई, और अँधेरे में उसने बस धीरे से कहा — “Priya, मैं कब से तुझे देख रहा हूँ… तू चाहती है न?”
मैंने कुछ नहीं कहा — बस उसकी pant का बटन खोल दिया। लाइट नहीं थी, लेकिन उसका लंड मेरे सामने था — भारी, नीचे की ओर मुड़ा हुआ। मैंने उसे हाथ में लिया — उसकी गर्मी हथेली से सीधी चूत तक जा रही थी।
मैंने घुटनों पर बैठकर चाटा — ऊपर-नीचे, धीरे-धीरे। उसने मेरा सिर थामा और बोला — “Priya… तू नशा है…” और फिर उसने मुझे पीछे से झुकाया — टेबल पर।
उसने अपनी लार लगाई, और फिर झटके में अंदर किया — "आहh... Aditya… गहरा जा रहा है…" उसने मेरी कमर पकड़ी, मेरी पीठ को दबाया — और हर thrust के साथ मेरी चूत गीली होती गई। मेरे मुँह से आवाज़ें निकल रही थीं — तेज़, रुक-रुक कर, जैसे मैं तृप्त भी थी… और और चाहती भी थी।
जब Aditya झड़ा — वो थम गया। लेकिन मेरी चूत अब भी फड़फड़ा रही थी। और मुझे लगा जैसे अब हर लंड मेरी आदत में शामिल हो चुका है।
अब मुझे प्यार में सुकून नहीं चाहिए। मुझे जिस्म में जुनून चाहिए। मैं खुद को शीशे में देखती — कभी नंगी, कभी किसी के लंड पर बैठी हुई। और हर बार खुद से पूछती — “क्या ये गलत है?” लेकिन जवाब सिर्फ मेरा जिस्म देता — “नहीं… तू जिंदा है।”
मैं अब भी Rajeev से I love you कहती हूँ। लेकिन सच ये है — मैं सिर्फ उसकी नहीं हूँ। मैं अब हर उस लंड की हूँ जो मुझे महसूस करना चाहता है। हर उस मर्द की जो मुझे भोग नहीं — जानना चाहता है, मेरी हर सिसकी के अंदर की कहानी पढ़ना चाहता है।